learning to ski amidst oaks and Deodars of Auli

गढ़वाल हिमालय में एडवेंचर की पाठशाला

चारधाम की राह पर चलते हुए एडवेंचर के सबक! पड़ गए न आप भी मेरी ही तरह हैरत में! मुमकिन है ये भी … गढ़वाल हिमालय में सुदूर औली तक आना होगा, जोशीमठ वो अंतिम पड़ाव है जहां से दो रास्ते अलग हो जाते हैं, एक बदरीनाथ यानी परम धाम तक चला जाता है और दूसरा एडवेंचर धाम यानी औली तक लाता है। मर्जी आपकी, जो भी चुनें। बेशक, आध्यात्म और एडवेंचर दोनों ही खुद को भुलाकर किसी परम ध्यानावस्था में ले जाने वाले होते हैं।

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highway to Auli

हमने चुनी एडवेंचर स्पोर्ट्स की मंजिल यानी औली। जोशीमठ से यही कोई बीस किलोमीटर दूर। लगभग ग्यारह सौ साल पहले आदि शंकराचार्य भी इसी मोड़ पर आए थे, जोशीमठ में पांच साल रुक गए, ध्यानमग्न और फिर जो ज्ञान मिला उसने उन्हें बदरीनाथ की राह पर मोड़ा था।

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Jyotirmath is one of the four Maths (seats) established by Adi Shankaracharya

और हम हम मस्ती की पाठशाला में भर्ती हो गए। शायद वैसा संकट हमारे सामने नहीं था जो महज़ ग्यारह साल की उम्र में आदि शंकराचार्य को मथ रहा था — हिंदू धर्म के अस्तित्व पर मंडराता संकट।

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गढ़वाल हिमालय में बसे औली तक पहुंचने की राह लंबी सही मगर बेहद खूबसूरत है। हरिद्वार, देहरादून जैसे शहरों से लगभग दस घंटे सड़क का सफर तय करने के बाद औली पहुंचा जा सकता है। हरिद्वार से औली तक के 280 किलोमीटर लंबे मार्ग पर आप पंचप्रयागों में से चार पार करते हैं। बदरीनाथ हाइवे का यह सफर आपको आध्यात्म की खुराक बिन मांगे देता है।

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Devprayag – Confluence of Alaknanda and Bhagirathi

इंसानी सभ्यता आसपास ही होती है और कुदरत के ऐसे नज़ारे भी साथ-साथ बने रहते हैं।

IMG_7580उत्तराखंड के दूसरे सबसे बड़े जिले चमोली में है औली जिस तक पहुंचने के लिए हिमालय से घिरे इन सर्पीले रास्तों से गुजरती है राह!

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पूरे दस घंटे का सफर पूरा कर जोशीमठ आ लगी थी हमारी सुमो। शाम अपने पूरे शबाब पर थी, कुछ ही देर में अंधेरा घिर आया था और जोशीमठ के टैक्सी स्टैंड पर जैसे पहले से लगे वाहन नींद में उतरने लगे थे। हमारे ड्राइवर ने भी लंगर डाल दिए। आगे रास्ते पर बर्फ का संसार है, रात का सफर खतरे से खाली नहीं था। उसकी सलाह पर हमने भी औली तक बची आखिरी बीस किलोमीटर की राह को अगले दिन नापने का मन बना लिया। गढ़वाल मंडल विकास निगम लिमिटेड (GMVN) के टूरिस्ट रेस्ट हाउस में उस रात पनाह ली हमने।

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Way to Auli

अगली सुबह से शुरू हो गया था रोमांच का सफर। बर्फीले रास्तों पर बढ़ती हमारी सुमो

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और अब हिमालय ने भी अपना सौंदर्य उड़ेल दिया था

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गढ़वाल मंडल विकास निगम लिमिटेड (GMVN) के स्की रेसोर्ट से कोई आधा किलोमीटर पहले गाड़ी ने खड़ी चढ़ाई वाला मोड़ काटने से मना कर दिया। और फिर इस बर्फीली राह पर हम पैदल ही बढ़े चले।

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एक बर्फीला संसार सामने इंतज़ार में था। स्कीयर्स की हलचल से गुलज़ार थी औली की बर्फीली ढलानें।

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और स्लैज …. वो भी तो थी, ढलानों पर रपटने के लिए।

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और नंदा देवी जैसी चोटियों की छांव में स्की की प्रेक्टिस का आनंद तो जीएमवीएन के औली स्की रेसोर्ट में आकर, कुछ दिन बिताकर ही महसूस किया जा सकता है।

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जब स्की, स्लैज की सवारी से मन भर जाए तो इस केबल कार की सवारी जरूर करें, इस उड़नतश्तरी से सिर्फ बाइस मिनट में सबसे उपरी टॉवर से नीचे जोशीमठ तक पहुंचा जा सकता है। भाग्यशाली थे हम जो इसकी सवारी भी करने का मौका मिला, दरअसल, 2009 में सैफ खेलों के बाद ही यह खराब हो गई थी। और फिर अगले चार साल तक आंदोलनों, धरनों, कितनी ही मांगों—दबावों के बाद जाकर इसकी मरम्मत हुई और जनवरी 2015 में ही दोबारा इसे चालू किया गया है।

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और करीब दस हजार फुट की उंचाई पर औली का नज़ारा किसी स्वर्ग से कम होता है क्या। यकीन नहीं तो ज़रा इस तस्वीर को ही देख लो

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