कश्मीर है फिर से मेज़बानी के लिए तैयार, गुलमर्ग ने भेजा है बुलावा
श्रीनगर हवाईअड्डे तक पहुंचने की जद्दोजहद के बीच भी मुझे एक अदद कांगड़ी खरीदने की सुध थी। दरअसल, लंबे इंतज़ार और बेताबियों के बाद बीते हफ्ते ठीक उस रोज़ सुबह से ही हल्का हिमपात गुलमर्ग में शुरू हो गया था जब मुझे कश्मीर की वादियों को अलविदा कहना था। मौसम का जादू कब इतना हावी हुआ कि होटल के टीलाउंज ‘चायकश’ की शीशे की दीवारों के उस पार हो रहे स्नोफॉल को देखने में ही वो सारा मार्जिन खप गया जो हमने गुलमर्ग से श्रीनगर तक के हाइवे के लिए रख छोड़ा था। स्नोफॉल का रोमांस अधूरा छोड़ हमने तेजी से अपनी उस अगली मंजिल की ओर रुख किया जो अपनी तमाम सुरक्षा जांच के चलते मुझे आफत लगती रही है।
गुलमर्ग की पहाड़ी से उतरकर आधे घंटे में तंगमर्ग आ लगे थे और कुछ ही दूर खड़ी बस्तियों में सड़क के किनारे सजे बाजारों की दुकानों को टटोलने में आंखें गुम थी। ड्राइवर मंजूर ने हमारी मुसीबत को भांप लिया था, उसने हमें आराम से सफर का मज़ा लेने की मीठी हिदायत दी और अपनी मिचमिचाती, छोटी—छोटी आंखों को सड़क पर टिकाए रहा। फिर दौड़ती गाड़ी को हौले से एक दुकान के सामने रोककर उसने मेरी तरफ देखा भर, जैसे कह रहा हो — ‘वो रहा मेरा कश्मीर, भर लो मुट्ठी में या रख लो सीने से लगाकर इस अमानत को … ‘। और हमने लपककर एक छोटी-सी, नन्ही कांगड़ी को वाकई अपने सीने से लगा लिया।
दिल्ली की कड़कती सर्दी की लड़ाई अब इसी के सहारे लड़ेंगे ..। इस बीच, फिर याद हो आया कि फ्लाइट का समय तेजी से करीब आ गया था, कहां कांगड़ी की खरीदारी में उलझ गए! बहरहाल, गुलमर्ग-श्रीनगर हाइवे पर न बर्फ थी न ट्रैफिक, और न किसी हड़ताल की सुगबुगाहट के चलते जमा हुई भीड़। हम सिर्फ दौड़ते रहे बेरोकटोक और महज़ पौने दो घंटे में हवाईअड्डे की सुरक्षा जांच की अफरातफरी का हिस्सा भी बन गए।
पीर पंजाब की जिन विराट पहाड़ियों को पीछे छोड़ आए थे अब कुछ कुछ वैसी ही विराट उलझन सामने थी। कांगड़ी को कैसे ले जाएंगे, सूटकेस में बंद करें और चेक-इन लगेज में दें, या विमान में ले जाने की इजाज़त मिल जाएगी। क्या करें इस कश्मीरी अमानत का? अभी उलझन शुरू हुई भर थी कि सुरक्षा एजेंसी के दो सिपहसालार मेरी तरफ बढ़े चले आते दिखे .. “इसकी चिंता न करें आप, इसे आगे हमारे गार्ड आपसे ले लेंगे, नाजुक सामान है न, पूरी हिफाज़त से ले जाएंगे। दिल्ली में आपको वापस मिल जाएगी … ।” और अगले मोड़ पर, फ्रिस्किंग के साथ-साथ कांगड़ी हमसे ले ली गई, उस पर ‘फ्रेजाइल’ की पर्ची चस्पा हुई और वो हमसे जुदा हो गई। यकीन नहीं हुआ कि सुरक्षा जांच की जटिलताओं में उलझाने वाले श्रीनगर एयरपोर्ट पर हमारी इतनी बड़ी परेशानी मिनटों में फुर्र हो गई थी। सारे फसाने ही खत्म … काश, कश्मीर के दूसरे झमेले भी यों ही सिमट जाते ..।
बहरहाल, हमारे अचरज की दूसरी किश्त दिल्ली हवाईअड्डे पर शुरू हुई। कन्वेयर बैल्ट पर जाने कितने तरह के कैसे-कैसे लगेज के बीच एक बड़ी-सी प्लास्टिक ट्रे में ठुमकती चली आ रही थी हमारी कांगड़ी। दूर से दिखते ही मेरे साथी रजत ने आवाज़ लगायी — ‘वो आ गई‘ और इससे पहले कि हम उस तक पहुंचते रजत उसे उठाकर गर्वीली मुस्कान अपने होंठों पर सजा चुका था। हमारी अमानत अब हमारे हाथों में थी और कन्वेयर बैल्ट के इर्द-गिर्द जमा सारे कश्मीरियों के चेहरे चमक रहे थे। होंठों पर मुस्कुराहटें थीं, आंखों में गर्व था जैसे कह रहे हों — ”देखा, हमने कितना कुछ संभाल रखा है आज भी।‘
और हम अपनी झोली में अपना कश्मीर लिए आगे बढ़ गए।
इस बीच, गुलमर्ग में हिमपात शुरू हो चुका है, स्कींग-स्नोबोर्डिंग के दीवाने जो वहां जमा हैं, खुश हो रहे हैं। इस बार कुदरत ने इंतज़ार कराया है एडवेंचर प्रेमियों को, लेकिन देर से ही सही गुलमर्ग की सफेद ढलानों पर रंग-बिरंगी जैकेटों में लिपटे स्कीयर्स की सरगर्मियां बढ़ने लगी हैं। आमतौर पर लोगों को यह गलतफहमी रही है कि एडवेंचर स्पोर्ट्स का मज़ा लेने के लिए यूरोप-अमरीका जाना पड़ता है, स्की के लिए स्विस एल्प्स ही जैसे इकलौता ठिकाना है। लेकिन अब यह तस्वीर बदल रही है। दरअसल, हिंदुस्तान का अमीर तबका जो अब से कुछ समय पहले तक यूरोप की बर्फीली पहाड़ियों पर अपने शौक को धार देने और हुनर आजमाने पहुंचता रहा था उसने भी अब हमारे अपने आंगन में खड़े हिमालय की खूबियों को पहचानना शुरू किया है। गुलमर्ग की पाउडर स्नो की टक्कर में कोई दूर-दूर तक नहीं है, जनवरी से मार्च तक मौसम का मिजाज़ भी यहां ऐसा रहता है कि देश से ही नहीं विदेश से भी एडवेंचर खेलों के प्रेमी अब काफी संख्या में यहां आने लगे हैं। और ढलानों की चोटियों पर चुटकियों में पहुचांनने के लिए यहां लिफ्ट भी लगायी गई है जो दुनिया में सबसे उंची स्कींग लिफ्ट है।
एशिया का अपर मिडल क्लास अब स्कींग के अपने देसी ठिकानों को तलाश रहा है। जो खेल कभी मुट्ठी भर अमीरजादों तक सिमटे थे वो अब समाज के एक बड़े तबके की पहुंच में आ रहे हैं। और इसका श्रेय उन संस्थानों को तो है ही जो इन एडवेंचर खेलों का प्रशिक्षण दे रही हैं बल्कि उन रेसोर्ट्स, होटलों को भी जाता है जो ऐसी मंजिलों के आसपास सेवाएं देने के लिए तत्पर हैं।
स्कींग की बेसिक पाठशाला से लग्ज़री की मंजिल तक
दक्षिण कश्मीर में लगभग 13799 फुट उंंचे अफरवाट पर्वत के साए में 9 हजार फुट पर गुलमर्ग बसा है। करीब तीन साल पहले जब स्कींग का ककहरा सीखने मैं यहां आयी थी तब पर्यटन मंत्रालय के इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ स्कींन एंड माउंटेनियरिंग (आईआईएसएम) में ही एडवेंचर का एबीसी सीखा और उनके ही सैंट्रली एयरकंडीशंड ठिकाने में टिकी थी। लगातार बर्फबारी और शून्य से नौ डिग्री नीचे गिर चुके तापमान में भी आईआईएसएम ने अपनी मेज़बानी और ट्रेनिंग से अभिभूत कर दिया था। आसपास दूर तलक सिर्फ बर्फ ही बर्फ दिखती थी, सवेरे से दोपहर तक गुलमर्ग की पहाड़ियों पर स्कींग सीखने को उतावले बच्चों की रेल-पेल जरूर रहती लेकिन फिर जैसे आसमान से जमीन तक पर सन्नाटा पसर जाता।
इस बार मेज़बान खैबर हिमालयन रेसोर्ट एंड स्पा ने तो जैसे पुरजोर ऐलान ही कर दिया कि गुलमर्ग अब लग्ज़री स्की हॉलीडे की भी मंज़िल बन चुका है। रेसोर्ट में कश्मीरी रेशम, उन, अखरोट की लकड़ी के फर्नीचर, गलीचों की गरमाहट और काहवा की चुस्कियों की बीच वो दोपहर बाद भारी लगने वाला समय भी कैसे बीत जाता था पता ही नहीं लगता। कहते हैं स्पा के बगैर स्की हॉलीडे पूरा नहीं होता। खैबर ने इस पहलू का भी भरपूर ख्याल रखा है और दिन में पहाड़ियों से जूझते स्कीयर्स के लिए बॉडी मसाज, आयुवेर्दिक उपचार, फेशियल सरीखे स्पा ट्रीटमेंट उपलब्ध कराए हैं। यानी एडवेंचर और लग्ज़री की एक नई मिसाल अब गुलमर्ग में दिखाई देती है।
स्कीयर्स के लिए एक बड़ी सुविधा है स्की लिफ्ट यानी गंडोला। गंडोला की सवारी कर अफरवाट तक पहुंचा जा सकता है। पहले ढाई किलोमीटर की सवारी (फेज़ 1) कुंगदूरी पर्वत 10050 फुट तक पहुंचाती है। यहां उतरकर कैसे कदम खुद—ब—खुद कैफे की तरफ बढ़ जाते हैं और काहवा, मैगी का लुत्फ आप उठाने लगते हैं, यह आपको खुद भी कभी समझ में नहीं आता। ध्यान से देखने पर याद आता है कि सफेदी से नहायी यह वही जगह तो है जो गर्मियों में फूलों से सज जाती है, फूलों से सजे इन मैदानों ने ही इस जगह को गुलमर्ग (गुल — फूल , मर्ग — मैदान) नाम दिया है। कुदरत अपना रूप किस हद तक बदल सकती है, इसका दीदार करने के लिए कश्मीर में अलग—अलग मौसम में आना बनता है!
साढ़े तीन किलोमीटर का आगे का सफर (फेज़ 2) और भी खूबसूरत बुलंदियों से गुजरते हुए 14 हजार फुट पर पहुंचाता है। यहां से साफ मौसम में हिमालय की दूसरी सबसे उंची चोटी के2 को भी देखा जा सकता है। अब यह अलग बात है कि सर्र—सर्र चलती बर्फानी हवाओं के थपेड़े झेलने के लिए आप यहां कितनी देर रुक पाते हैं!
हम तैयार थे गंडोला की दूसरे चरण की सवारी के लिए। सैलानियों की बेचैन नब्ज़ को टटोलना हो तो गंडोला सवारी के लिए लगी लाइनों में खड़े लोगों को देख लेना चाहिए। हर कोई गंडोला पर चढ़ने को उतावला, आगे क्या है उसे देखने को बेचैन। हमारा नंबर आता कि तभी धड़घड़ाते हुए सेना के कुछ जवान और लंबे—उंचे युवक अपनी स्की किटों के साथ तेजी से हमारी तरफ बढ़े। अब सैलानियों को इंतज़ार करना होगा, यह स्की रैस्क्यू टीम है, अफरवाट की चोटी से स्कींग का लुत्फ लेने पहुंचे स्कीयर्स की सुरक्षा का इंतज़ाम … दरअसल, शौकिया स्कीयर्स गुलमर्ग की निचली ढलानों तक ही रहते हैं लेकिन असली वाले स्नोबोर्डर्स, स्कीयर्स काफी दूर और उंचाइयों पर निकल जाते हैं। हमें याद आया कि गुलमर्ग में ही हेली स्की भी है, लोकल कश्मीरी बिल्ला बख्शी की इस हेली स्की के दो हेलिकॉप्टर एडवेंचर प्रेमियों को आसमान में उड़ाकर लाते हैं, किसी बुलंदी पर उतारते हैं और वहां से ढलानों पर फर्राटा गुजरते हुए वे कई बार नीचे तंगमर्ग तक पहुंच जाते हैं। कहते हैं इन ढलानों ने यूरोप की भी कितनी ही स्की मंजिलों को पीछे छोड़ दिया है। यहां जमा बर्फ के साथ-साथ एक और बात जो देसी-विदेशी टूरिस्टों को रास आती है वो है एशिया के इस उम्दा स्की रेसोर्ट का कीमतों के मामले में विदेशी मंजिलों के मुकाबले काफी सस्ता होना। यानी अब देसी टूरिस्ट को भी एडवेंचर-लग्ज़री का यह खेल अपनी शर्तों पर मिलने लगा है। तो फिर यूरोप क्यों चला जाए, गुलमर्ग है न!
सर्दियों का लुत्फ लेने के लिए चले आओ कश्मीर
तो जो आपसे कहते हैं कि इस कड़कती ठंड में दक्षिण भारत में हम्पी चले जाओ, राजस्थान हो आओ, गुजरात की माटी की गंध लेने जाओ या किसी और गरम मौसम वाली सैरगाह को टटोलो, क्योंकि हिमालय और पहाड़ तो गर्मियों के ही ठिकाने हैं उन्हें अब बता दें कि सर्दियों में भी हिमालय घुमक्कड़ी का बड़ा ठिकाना है। माना कि कुछ मंजिलों तक आवाजाही सर्दियों में बंद हो सकती है लेकिन बहुत सी जगहें ऐसी भी हैं जो साल भर खुली रहती हैं। और कश्मीर ऐसी ही एक सैरगाह है जिसने एक बार फिर अपने दरवाजे सैलानियों के लिए खोल दिए हैं। वेरीनाग में झेलम का उद्गम देखना हो या श्रीनगर में डल पर हाउसबोट में रुकने का मज़ा लेना हो, या फिर अपनी रगों में दौड़ते रोमांच को गुलमर्ग की पहाड़ी ढलानों पर ठिकाने लगाना हों, तो बस कश्मीर की राह पकड़ लें।
कश्मीर – कुछ जरूरी जानकारी
हवाईअड्डा – श्रीनगर
श्रीनगर–गुलमर्ग दूरी — 51 किलोमीटर, लगभग दो घंटे में इस दूरी को नापा जा सकता है
कब आएं — कश्मीर के सालभर में चार मौसम हैं, हरेक में आया जा सकता है
क्या करें – सैर—सपाटे की आम मंजिलों के अलावा गुलमर्ग में एडवेंचर स्पोर्ट्स और लग्ज़री रेसोर्ट का लुत्फ लें
स्की का मौसम — दिसंबर के आखिर से मार्च के आखिर तक, कई बार मौसम और बर्फ की मेहरबानी के चलते अप्रैल में भी स्कींग होती है