कल्पा में आपके कमरे से नज़ारा अगर ऐसा हो तो? पहले तो मन ललचाएगा अखरोट तोड़ने का, चाहे वो अभी कच्चे सही? और उस लालच से उबर गए तो सामने हाथ बढ़ाकर किन्नर कैलास रेंज को छू आने का! कुछ भी नहीं कर सके तो पूरी शाम बस एकटक उन बर्फीले पहाड़ों को देखने में कट जाएगी जिनकी चोटियों से कितने ही ग्लेशियर दौड़ते आते हैं। और हौंसला हो तो रात में इस कमरे से सटी बालकनी में जरूर वक़्त बिताना, तब बादलों के बीच से चांद निकलता है रह-रहकर और वो जो उस वक्त चांदनी फिसलती है इन पहाड़ों पर उसे देखकर यकीन हो जाएगा कि किन्नौरी परीलोक में आपका दीदार करने खुद कुदरत उतर आयी है!
दिन का उजास जब फैलता है, सुनहरी धूप जब किन्नर कैलास की पर्वत श्रेणियों पर बिखरती है तो कल्पा का एक रंग ऐसा भी होता है।
किन्नौर के जिला मुख्यालय रेकॉन्ग पियो से सिर्फ 13 किलोमीटर की सर्पीली सड़कों की चढ़ाई के बाद कल्पा पहुंचा जा सकता है। कल्पा वो मुकाम है जिसमें यों तो कुछ खास देखने-जानने लायक नहीं है लेकिन एक शाम ठहरकर, एक रात बिताकर अगले दिन किन्नर कैलास की पहाड़ियों पर सवेरे का उतरना देखने के लिए यहां रुका जा सकता है। सवेरे के वो पल जब बादलों और कुहासे की झालर को चीरकर धूप फैलती है और किन्नर कैलास (6050 मी), इस रेंज की सबसे उंची चोटी जरकन्दॉन (6479मी) और रालदांग की (5900 मी) चोटियां सुनहरे कणों से नहा उठती हैं, तब उस अहसास को अपना अनुभव बना लेने के लिए यहां आपका होना बनता है।
एक फैंटेसी लैंड हुआ करती है, किताबों में या कल्पनाओं में, मगर कल्पा में वो कुछ इस तरह साकार होती है –
किन्नौर के एक कोने में दुबका गांव सही कल्पा लेकिन सुविधाओं से भरा-पूरा है। हिमाचल टूरिज़्म से लेकर कई प्राइवेट होटल आधुनिक ट्रैवलर की जरूरतों को पूरा करने के लिए मुस्तैद हैं। इस तस्वीर को देखकर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कल्पा में कुदरत के अलवा इंसानी मेहनत ने सैलानियों के लिए कितना कुछ सजा रखा है!
हम द ग्रैंड शांबा-ला (https://www.facebook.com/thegrandshambala?fref=nf) में ठहरे थे उस शाम।
सांग्ला से आगे बढ़ने पर सभ्यता से दूर होने का अहसास धीरे-धीरे बढ़ने लगा था। अलबत्ता, रेकॉन्ग पियो में आकर वो भ्रम टूटा। किसी भी पहाड़ी कस्बे की तरह हलचल, चहल-पहल और दुकानों से आबाद। ढाबों-दुकानों, बसों और गाड़ियों को पीछे छोड़ते हुए एक पहाड़ी सड़क कल्पा को निकल गई है और हमारी हमसफर वही बनी। कल्पा पहुंचने तक थककर बेहाल हो चुके थे हम, और उस पर तीसरी मंजिल पर हमें ठहराने का इंतज़ाम किसी सज़ा की तरह लगा था। लेकिन हर अच्छी चीज़ जैसे आवरण में लिपटी आती है, उसी तरह कल्पा से सामने किन्नर कैलास रेंज का वो अद्भुत नज़ारा इस उंचाई पर जाकर ही बेहतरीन मिलता है। जब कभी आप वहां जाए तो तीसरी या चौथी मंजिल के कमरे में ठहरने का अनुरोध करना न भूलें। बैस्ट व्यू की खातिर!
द ग्रैंड शांबा-ला में पहुंचकर कुछ देर के लिए आप भूल जाते हैं कि किन्नौर में हो या तिब्बत में। होटल के कमरों की सज्जा आपको रह-रहकर बौद्ध प्रभाव में सराबोर दिखती है और सबसे उपर की मंजिल पर बने एटिक में तो जैसे मिनी तिब्बत ही है। बुद्ध के उपदेशों की अनूदित धार्मिक प्रतियां कंग्यूरों से लेकर तिब्बती धर्म गुरुओं की तस्वीरें उस कोने में सजी हैं। ओम मणि पदमे हूम् के मंत्रोच्चार की ध्वनियों से गूंजते उस एटिक में बौद्धमयी शाम धीरे धीरे गहराती हुई रात में बदल रही थी।
हिमाचली आवभगत का जीता-जागता अनुभव हमें इसी गैंड शांबा-ला में हुआ। तिब्बती पिता और हिमाचली मां की संतान पृथ्वी राज नेगी की कल्पनाओं का साकार रूप है यह होटल और अपनी मेहमाननवाज़ी से वो आपको राजस्थानी सत्कार-मनुहार परंपरा की याद सहज दिलाते हैं। यानी The Grand Shamba-La में ठहरना एक अलग अनुभव में बदल जाता है। आपके लिए ढेरों कहानियां होती हैं, चिनी के बीते दौर के किस्से होते हैं और यहां तक कि आसपास की वॉक के लिए पृथ्वी की अदद कंपनी भी!
और यहीं आकर पता चलता है कि कैसे इस इलाके में लगभग हरेक के पास दो नाम हैं — एक तिब्बती वंश परंपरा से चला आया नाम और दूसरा पूरी तरह हिमाचली/हिंदुस्तानी पहचान को पुख्ता कर देने वाला।इस दोहरे नामकरण के बारे में विस्तार से फिर कभी, किसी और पोस्ट में बात करेंगे।
उस रात अपने कमरे से सटी बालकनी में चुपचाप देर तक किन्नर कैलास की पहाड़ियों को देखती रही। बादलों को धकेलकर कई-कई बार चांद ने पूरी पहाड़ी को उजास से भरा, देर तक अंधेरे में टकटकी लगाए बैठी रही। मेरे सामने ही किन्नर कैलास, बायीं तरफ शिवलिंग और दायीं तरफ जरकॉन्दॉन की चोटियां थी। उस अंधेरे में यों तो चोटियों का दीदार मुमकिन नहीं था, लेकिन पिछली शाम की तस्वीरें ताज़ा थी और फिर कल्पनाओं के घोड़े तो दौड़ते ही रहते हैं!
कल्पा — हिमाचल के तीर्थयात्रा मानचित्र पर अहम् मुकाम
कल्पा से ही किन्नर कैलास परिक्रमा शुरू होती है, यहां से करीब पचास किलोमीटर दूर ठांगी तक गाड़ी से पहुंचकर आगे ट्रैकिंग कर तीर्थयात्री शिवलिंग के दर्शन को रवाना होते हैं। परिक्रमा के बाद वापसी का रास्ता उन्हें सांग्ला घाटी पहुंचाता है।
कल्पा (Kalpa, Dist Kinnaur, Himachal Pradesh, Indian Himalaya) तक पहुंचने के लिए
- नज़दीकी भुंतर हवाईअड्डा (267 किलोमीटर )
- सड़क मार्ग से — 1. शिमला से ओल्ड हिंदुस्तान—तिब्बत रोड (NH22) होते हुए, शिमला और रामपुर से बसें/ प्राइवेट टैक्सियां आसानी से उपलब्ध
2. मनाली से आ रहे हैं तो रोहतांग और कुंजुम पास पार कर काज़ा-ताबो होते हुए (400 किमी) - मौसम — सर्दियों में बर्फबारी होती है और तापमान काफी नीचे गिर जाता है। मोटे, ऊनी कपड़े जरूरी हो जाते हैं लेकिन गर्मियों में हल्के ऊनी कपड़े काफी हैं
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