Truly amazed by your Amaze!
हिंदुस्तान की सड़कों से बेइंतहा मुहब्बत हो जिसे उसकी आंखों में एक अदद रोड ट्रिप का सपना हमेशा मचलता रहता है। और रोड ट्रिप पर निकलने की पहली शर्त है एक अदद कार जिसके पहिये आपके सपनों से भी तेज रफ्तार से दौड़ते हों। उस सपने ने ही हमें इस कार तक पहुंचाया था – हमारी Honda Amaze
एक लंबे जोड़-घटा और ”ये नहीं वो, ऐसी नहीं वैसी, इतने वाली नहीं, उतने वाली” जैसी बहसों के महीनों जारी रहे सिलसिलों के बाद मेरे दरवाज़े आयी थी ये खूबसूरत कार
समझ गए न क्यों खरीदी गई होगी Honda Amaze? इसके लिए मिडल क्लास का मनोविज्ञान समझना होगा। जानना होगा कि किन उम्मीदों के साथ एक मिडल क्लास परिवार बड़ी गाड़ी खरीदता है? दसियों साल हैचबैक की सवारी के बाद जब मिडल क्लास एक पायदान टापकर सेडान गाड़ी का ख्वाब आंखों में पिरोता है तो उसे अपने इस अरमान की एक मोटी कीमत अदा करनी होती है। उसकी बरसों की सेविंग्स पर ‘डेंट’ लगता है या वो एक बार फिर ईएमआई के झमेलों में उलझता है। तब कहीं जाकर होती है उसके ख्वाबों की तामील। और बस यहीं से सपनों में कतर-ब्योंत भी शुरू हो जाती है।
अपने साथ भी यही हुआ था। लंबी, बड़ी, खूबसूरत, सुकूनदायक, धांसू कार खरीदने का सपना होंडा सिटी से लुढ़कर Honda Amaze पर अटका था। वजह थी इस कार का दाम 6 लाख रु से कम होना, यानी मिडल क्लास की जेब के अंदर।
अफसोस कि होंडा अमेज़ की सवारी हमें रास नहीं आयी। कितनी ही बार दिल लगाना चाहा इस कार से, मगर वो कहते हैं न इश्क एकतरफा नहीं निभता। हमारे मामले में भी यही होता रहा। हम जितना जुड़ना चाहते अपने सपनों की इस बड़ी वाली कार से, यह उतनी ही हमसे रूठती रही। दरअसल, हमें जो कार होंडा ने सौंपी थी (माने पूरे पैसे लेकर, कोई गिफ्ट-विफ्ट नहीं की थी) , उसके दिल में एक छेद है। हर गर्मी में जैसे ही पारा 30-35 डिग्री सेल्सियस को लांघता है, इस कार का कलेजा डूबने लगता है। ए.सी. बैठ जाता है। अब सोचिए ज़रा कि दिल्ली की सड़कों पर साल के 8 महीने जिस ए.सी. की दरकार हर जान को होती है, वहीं हमारी अमेज़ का ए.सी. पारे को चढ़ता देख टांय-टांय फिस्स हो जाता है। बीती तीनों गर्मियां ऐसे ही कटती रही हैं। हम बदन झुलसने वाली गर्मी में सड़क पर अभी 5 किलोमीटर भी नहीं चल पाते हैं कि हमारी नाजुक अमेज़ का दिल बैठ जाता है …यानी ए.सी. लुढ़क जाता है। कभी तो घर से चलते हैं और 2 किलोमीटर तक चलते ही रहते हैं, ए.सी. के कान मरोड़ डालते हैं कितनी ही बार मगर वो अड़ियल अपने ही मन से जब उसे चालू होना होता है तब होता है। अब चाहे इतने में आप पसीने में नहा जाएं या आपका मेकअप बह जाए, Honda Amaze को क्या !
बीते साल बेटी निकली घर से सज-धज कर शादी के मंडप के लिए और पूरे 5 किलोमीटर बिन ए.सी. की गाड़ी में पसीने से जूझती रही। यकीन मानिए, शर्म से डूब मरे थे हम कि इस रोज़ भी इस बेशर्म गाड़ी ने आंखों की शर्म नहीं रखी।
बहरहाल, हम उसे मनाते रहे और वो हमसे रूठती रही। बीते महीनों में जब-जब यह शिकायत हुई हम service station भिजवाते रहे। यहां तक कि अब तो सर्विस स्टेशन वाले भी हमें हमारे नाम से कम वो रूठे हुए ए.सी. वाली अमेज़ कार के मालिक के तौर पर जानते हैं!
होंडा की जिस साख के मद्देनज़र हमने आंख मूंदकर Honda Amaze खरीदी थी उसका मटियामेट कर चुकी है हमारी वाली कार। अब तो हालात यह है कि इधर हम इसे सड़क पर दौड़ाते हैं, उधर यह रूठती है, हम तस से ले जाकर इसे सर्विस स्टेशन खड़ा कर आते हैं। फिर वहां के डॉक्टर लोग इसकी जाने क्या जांच-पड़ताल करते हैं, कभी 2 दिन, कभी 3 दिन, कभी 1 दिन और अभी पिछले हफ्ते पूरे 5 दिन सर्विस स्टेशन में रह आयी है हमारी अमेज़। हमें लौटायी गई इस भरोसे के साथ कि अब इनकी तबीयत एकदम दुरुस्त है। मगर कहां जी, ढाक के वही तीन पात! बीते एक हफ्ते में चार बार इस बेमुरव्वत कार को लेकर सड़कों पर निकले, हर बार रोए हैं।
कल इफ्तार की दावत के लिए निकले थे बड़े खुश-खुश मगर 2 ही किलोमीटर बार होंडा अमेज़ ने हमें याद दिला दिया कि आज फिर गलत सवारी को चुना है हमने। वहीं से एक बार फिर प्राइम होंडा के मैनेजर को फोन लगाया, बता दिया कि कि आपके डॉक्टर फिर इस गाड़ी का मर्ज पकड़ने से चूक गए हैं। घर के लोगों ने इस निकम्मेपन के चलते अब इसे ले जाना बहुत कम कर दिया है। शुक्र है कि कैब एॅप्स हैं, वरना तो कभी के पगला चुके होते हम।
सिर्फ इतना ही नहीं है मर्ज़ इस मॉडल में। जानते हैं बीते तीन साल में इसकी सैंट्रल लॉकिंग कभी काम नहीं की। जब-जब शिकायत की, जवाब मिला ‘आपके घर के आसपास जरूर मोबाइल टॉवर होगी, उससे गड़बड़ हो सकती है’। अब कोई बताए हमें कि अमेज़ की सैंट्रल लॉकिंग को कारगर बनाने के लिए एयरटैल—आइडिया से कह दें कि उखाड़ ले जाएं अपने टावर! तीन महीने पहले पूरा लॉक सिस्टम ही बदलवा डाला हमने, दस हज़ार रु खर्च किए मगर वो सैंट्रल लॉकिंग वाली मनहूसियत कायम रही। अलबत्ता, पिछले हफ्ते की सर्विस स्टेशन की यात्रा के बाद से अब तक लॉक काम कर रहा है।
ज़रा हमारे सीने पर सिर टिकाकर सुनने की कोशिश करें उस सपनीली हैचबैक के मालिक होने का दर्द जिसकी सैंट्रल लॉकिंग तीन साल से बेकार हो, जिसका एयर कंडीशनर महा बिगड़ैल हो और जिसे किसी न किसी वजह से बीते तीन सालों में दो बार टोइंग कर अस्पताल पहुंचाना पड़ा हो।
हां, एक बार जो काबिले-तारीफ है वो यह कि जब-जब हम इस बिगड़ैल बच्चे की शिकायत सर्विस स्टेशन में करते हैं, वो बड़े सब्र से हमारा दर्द सुनते हैं, फिर इस बच्चे को ले जाते हैं, मालूम नहीं इसके साथ क्या करते हैं। लौटा जाते हैं यह कहकर कि सब ठीक है। मगर हमारे सवार होते ही अमेज़ फिर रूठ जाती है।
अब इस रूठे ए.सी. वाली बिगड़ैल को कोई अपने शहर की हद से बाहर ले जाने की हिम्मत करे भी तो कैसे करे? और हम यात्राओं के मुरीदों को जब-जब बाहर जाना होता है, तब-तब टैक्सी बुलाते हैं। अमेज़ घर में आराम से खड़ी रहती है।
जून 2014 में अपनी पुरानी सैंट्रो को रिटायर कर नई होंडा अमेज़ खरीदने का फैसला किया था। अफसोस की नई कार अक्सर घर पर खड़ी रहती है और बूढ़ी, रिटायर्ड कार आज भी मंजिलों को नापने में साथ निभाती है।
Thanks for shattering my dreams of road tripping, Honda!
आपके लेख को पढ़कर हँसी भी आई लेकिन ग्लानि भी हुई. पाठकों पर जुल्म है ये. हम आपके दुःख में दुखी होना चाहते हैं लेकिन आपके लिखने के तरीके से हँसी निकल जाती है और मन में ग्लानि सी होने लगती है. उम्मीद करता हूँ आपकी बिगड़ेली हौंडा को कोई ढंग का डॉक्टर जल्द मिलेगा जो उसकी सारी बिमारी दूर कर देगा.
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विकास नैनवाल जी,
अपनी तकलीफ में पाठकों को डुबो देने का इरादा नहीं है। दरअसल, जब हमने इस कार को खरीदने का फैसला किया था तो हमारे जैसे कितने ही दूसरे यात्रियों ने इसकी तारीफों का वो समां बांधा था कि हम फिसल गए थे इस पर। ये वक्त ‘पेड रिव्यू’ का है, इंफ्लुएंसिंग का दौर है जिसमें हर पहलू को तोले बगैर सिर्फ अच्छा-अच्छा कहने का चलन है। मगर हम तो होंडा से ठगे गए उपभोक्ता ठहरे। इसलिए दर्द बयान करेंगे, अलबत्ता अंदाज़-ए-बयान कुछ ऐसा रखने की कोशिश है कि मामला बोझिल न हो जाए।
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आपका अनुभव पढ़ने व अपने अनुभव को देखते हुए ऐसा लगता है की अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी हमारे देश में अलग मानसिकता अपनाती है। यही honda अमेरिका मेंइस तरह का व्यवहार नहीं कर सकती क्योंकि वहां पर सख्त कानून ग्राहकों को सुरक्षा देता है। सिर्फ सामान बेचना बड़ी बात नहीं है पुराने ज़माने की मानसिकता ज्यादा नहीं चलेगी। यहाँ में मेरे अनुभव से कह सकता हूँ की हौंडा से कहीं बेहतर शायद suzuki की सोच है जो सर्विस के बाद भी ग्राहक को भूलती नहीं है। अगर ग्राहक यह शिकायत कर दे की डीलर ने सर्विस ढंग से नहीं की तो उन्हें चैन से नहीं बैठने देते जब तक आप संतुष्ट नहीं हों।
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बिल्कुल सही पकड़ा है आपने। तमाम MNCs यही खेल करने में मग्न हैं, डेवलप्ड देशों में उनके मानदंड फर्क हैं और हम हिंदुस्तानियों को कुछ भी भिड़ा दो, ठेल दो की नीति हावी है। और हम चुपचाप सब बर्दाश्त कर लेने, सारे अपमान के घूंट पी लेने की अपनी उस फितरत के चलते चुप लगाए रहते हैं जिसकी घुट्टी हमारे डीएनए में सदियों से घुली है।
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दुखद, इस कार का बहिष्कार करें
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बहिष्कार तो फिलहाल हो नहीं सकता क्योंकि गाढ़ी कमाई से खरीदी गई सपनीली कार है, लेकिन होंडा की इस बेइमानी के बारे में दूसरे ग्राहकों को आगाह करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़नी चाहिए। हम हिंदुस्तानियों की यह बहुत बड़ी कमजोरी होती है कि अक्सर अब अच्छे उपभोक्ता नहीं बन पाते हैं। किसी ब्रांड/प्रोडक्ट की कमियों /खूबियों के बार में खुलकर बात नहीं करते हैं और उसका फायदा उठाती हैं चोर कंपनियां। हम अपनी मसरूफियत और लापरवाही के चलते या तो उपभोक्ता अदालतों तक पहुंचना नहीं चाहते हैं और अगर ऐसा कुछ करते भी हैं तो दूसरे उपभोक्ताओं को इन सबके बारे में बताने से जाने-अनजाने चूक जाते हैं।
इस पोस्ट का मकसद उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन खड़ा करना है। इस लड़ाई को सिरे लगाना है।
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एक जरूरी अपडेट –
इस ब्लॉग के जरिए अमेज़ की ‘इमेज’ बिगड़ने का खतरा होंडा ने सूंघ लिया, घर से गाड़ी मंगवायी, बदले में एक लंबी वाली मोबिलियो दे गए कि जब तक हमारी बिगड़ैल को नहीं लौटाते तब तक हम ‘बेकार’ न रहें। हफ्ते भर में इस बार ‘मरीज़’ लौटकर आया। आज करीब दो हफ्ते हुए जाते हैं, मरीज़ का हाल बढ़िया है। उम्मीद कर रही हूं ये रूठने-मनाने के सिलसिले अब खत्म होंगे 🙂
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Very nice
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It is very sad that the arbitrariness of the foreign company
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