Askot Aarakot Abhiyan 2014 – Glimpses of journey through Uttarkashi

Team AAA 2014 in and around Uttarkashi (Uttrakhand)

27 June to 01 July 2014

एक जुनून की साक्षी बनी ​बीते पखवाड़े और महसूस किया कि हर पैदल अभियान सिर्फ पैरों की खलिश नहीं होता! अपने लोगों को जानने और पहचानने के लिए तीन जोड़ी कदम 1974 में उत्तराखंड के दूर—दराज के गांवों की तरफ बढ़ चले थे, निमित्त बने थे विख्यात पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा जिन्होंने इन तीन युवकों को यूनीवर्सटी में गर्मियों की छुटि्टयों का बेहतर इसतेमाल करने की प्रेरणा दी थीे। और शुरू हुआ उत्तराखंड में अस्कोट से आराकोट तक, पूरब से पश्चिम तक का एक नन्हा-सा प्रयास। वक्त़ बढ़ता गया और 1984 में राहगीरों में थोड़ी—सी तब्दीली के बाद भी अभियान जारी रहा, इस बार कुछ और गांव, कुछ और पगडंडियां अभियान के मानचित्र में शामिल हुईं। सरकार, व्यवस्था, अधिकारियों, संगठनों और कार्पोरेट जगत की बैसाखियों से दूर, अपने जज़्बे और जुनून के दम पर इन यात्रियों ने एक बार फिर उत्तराखंड की सीमाओं को नापा। फिर1994 में, फिर 2004 में और इस बार 2014 में गर्मियों में अस्कोट से आराकोट तक का सफर बदस्तूर जारी रहा है। अलबत्ता, पहली यात्रा में शामिल रहे यूनीवर्सटी स्टूडेंट ने अब बेहद सम्मानित, पद्मश्री, इतिहास के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ शेखर पाठक के रूप में अपनी पहचान बना ली है। जानते हैं, इस बार भी उनके कदम वैसे ही दौड़ रहे थे जैसे सत्तर के दशक में दौड़े होंगे, ‘चलो साथियो’ की हुंकार जब वो हर सवेरे भरते थे तो पूरी टीम कमर पर पिट्ठू टांगकर, गली—गली, सड़क—सड़क होते हुए घाटी—पहाड़, दर्रों, नदी—नालों को पार करने को तैयार हो जाती थी।

इसे जुनून ही कहेंगे न!

यह कोई पैकेज टूर नहीं था, कोई पिकनिक नहीं और न ही कोई टाइमपास प्रोग्राम। पैरों की खलिश नहीं, दिमाग की कोई बेचैनी थी, अपनों की पीड़ा को उनके नज़दीक जाकर देखने—सुनने की तलब थी, अपने लोगों से दो घड़ी बैठकर गपियाने की ललक थी, उन्हें सुनने की कसक थी, कुछ उन्हें जानने, कुछ खुद को बयान करने की बेताबी थी… हां, मैं भी कुछ बेचैन कदमों की साक्षी बनी थी! कुछ दूर मैं भी चली थी, भागीरथी से असी गंगा के तट मैंने भी खंगाले थे उन बेचैन कदमों के साथ… मैं भी इस बार उस ऐतिहासिक अभियान का हिस्सा बनी थी।

अपने गांवों, अपने लोगों को जानने के क्रम में टीम 27 जून को उत्तरकाशी की सीमा पर पहुंची तो निम की मेज़बानी का संदेश मिला। उस रात ठिकाना NIM, Uttarkashi, Uttrakhand

AAA 2014 yatris being welcomed by Registrar, NIM, Uttarkashi

AAA 2014 yatris being welcomed by Registrar (Right), NIM, Uttarkashi 

टीम में थे 72 साल के ‘चिर युवा’ से लेकर 25 बरस तक के नौजवान। कोई शोध छात्र तो कोई मीडियाकर्मी, जर्नलिस्ट, प्रोफेसर, सॉफ्टवेयर डेवलपर भी, सेना के रिटायर्ड अधिकारी भी, टीचर भी… यानी अलग-अलग बैकग्राउंड के प्रोेफेशनल्स कोई गर्मियों की छुट्टी में आया था तो कोई काम से छुट्टी लेकर।

students. researchers were also in AAA team

students. researchers were also in AAA team

कौन कह देगा इन चेहरों को देखकर कि दिनभर थकान, प्यास, बारिश, धूप, पैरों के छाले और यहां तक कि आंखों की तकलीफ, पेट की नरमी, तन की शिकायतों को नज़रंदाज़ कर आ रहे थे ये ?

Enthusiastic yatris sharing experiences

Enthusiastic yatris sharing experiences

28 जून को टीम ने औपचारिक आॅफ घोषित किया, कपड़े धुलने, सुखाने, नहाने, सुस्ताने और आगे के लिए खुद को तैयार करने के लिए। मगर तो भी बैठना किसे भाया। और कुछ न सही तो निम का म्युज़ियम ही देखा जाए।

AAA 2014 yatris @NIM, Himalayan Museum

AAA 2014 yatris @NIM, Himalayan Museum

शेखर दा के पास किस्से हैं, घटनाओं का चलता—फिरता पिटारा उनके कंधे पर रहता है, म्युज़ियम का गाइडेड टूर उनके साथ किया हमने।

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निम हिमालयी अभियानों के ट्रैकर टोलियों को उपकरण, गीयर आदि देता है, उसी खजाने को हमने भी खंगाला। कौन जाने, कल किसी हिमालयी चोटी पर पहुंचने की बेचैनियों से भर उठें हमारे कदम!

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टीम ताज़ादम हो चुकी थी, अब निम से विदाई की घड़ी थी।

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अगला ठिकाना था भागीरथी के तट पर बना शिवानंद आश्रम

River Bhagirathi some 95 kms downstream from Gangotri

River Bhagirathi some 95 kms downstream from Gangotri

यहां से किसी भी दिशा में निकल जाने पर उत्तरकाशी में बीते सालों की आपदाओं का ग्राफ साफ दिखायी देता है।

असी गंगा पर हाइडल प्रोजेक्ट को 2012 की आपदा में करारा झटका लगने के बावजूद फिर वही मनमाफिक तरीके से डेवलपमेंट की रफ्तार दिखी। वही लालच, वही गुरूर, वही पैसों का खेल ..

AAA team visited Asi Ganga valley area near Uttarkashi

AAA team visited Asi Ganga valley area near Uttarkashi

असी गंगा की घाटी में एक पंछी भी पंख पसारता नज़र नहीं आया। ये वही घाटी थी जो ​कभी बर्ड वॉचिंग के लिए मशहूर थी। नदी है कि रोखड़ हुई जाती है मगर इंसान है कि अब भी सबक सीखने को तैयार नहीं है। अब भी नदी को बांधने, घेरने की कवायद जारी है।

Asi Ganga, once a beautiful river has been reduced to a mini stream an rubble

Asi Ganga, once a beautiful river has been reduced to a mini stream an rubble

गांव—गांव रात बिताकर, गांववालों के संग रूखा—सूखा, बासी खाकर बहुत कुछ जाना जा सकता है। अस्कोट—आराकोट अभियान 2014 ने यही एक बार फिर साबित किया कि अपने लोगों तक पहुंचने के लिए एक ईमानदार कोशिश चाहिए, बस..

AAA 2014 team near Sangam Chatti on old Yamunotri Marg

AAA 2014 team near Sangam Chatti on old Yamunotri Marg

टीम ने पुराने यमुनोत्री मार्ग पर बढ़ना शुरू किया तो एक के बाद एक आपदा से नष्ट हुई प्रकृति के दर्शन होते चले। संगम चट्टी, जो कभी इस राह पर पैदल बढ़ते राहगीरों के लिए छोटा—मोटा बाज़ार हुआ करता था, अब महज़ दो—तीन गुमटियों तक सिमट गया था। यहीं पास के अगोड़ा गांव का एक गुज्जर, बुजुर्ग गंभीर हाल में मिला। टीम ने तत्काल उन्हें चिकित्सा सहायता के लिए शिवानंद आश्रम भिजवाया। कहीं दवा मिली तो कहीं दुआओं के सिलसिले बने ..

an ailing nomad from nearby village waiting for medical aid

an ailing nomad from nearby village waiting for medical aid

शहरों में हमें मयस्सर नहीं सुकून के पल, यहां अस्कोट—आराकोट अभियान के यात्रियों ने उत्तरकाशी और आसपास के गांवों की तबाही को खुद जाकर देखा—समझा, और जाने कितने ही मौन संकल्प हुए।

Local Gram Pradhan showing Didsari Village affected by last year's calamity

Local Gram Pradhan showing Didsari Village affected by last year’s calamity

इस पूरे सफर में कहीं यात्रियों को पुरानी यात्राओं के जाने—पहचाने मुकाम मिले तो कभी बीती यात्राओं में शुमार रहे सहयात्रियों के स्वागत में खुले घर। लंबे समय तक हिमालय से लेकर यूरोप तक की चोटियों पर हिंदुस्तान के तिरंगे को पहुचाने में जुटी रहीं पर्वतारोही चंद्रप्रभा ऐतवाल ने भी अपने घर और दिल के दरवाजे खोल दिए उस शाम..

Mountaineer ChandraPrabha Aitwal welcomed AAA team at her home

Mountaineer ChandraPrabha Aitwal welcomed AAA team at her home

फिर शिवानंद आश्रम से भी विदाई की घड़ी आ पहुंची।

Goodbye Shivanand Ashram!

Goodbye Shivanand Ashram!

उत्तरकाशी—गंगोत्री हाइवे पर बढ़ चला कारवां

Padyatris on the move again

Padyatris on the move again

उत्तरकाशी की धुपीली सड़क पर पैदल मार्च करते हुए इस हंसी ठट्टे के लिए कुव्वत चाहिए! लगता है अभियानों के हमसफर अक्सर इस खुराक को अपनी जेबों में भरकर चलते हैं !

Salam to the the energy, the hearty laugh and the indomitable spirit !

Salam to the the energy, the hearty laugh and the indomitable spirit !

पूरे पंद्रह रोज़ से पैदल चल रही जेएनयू की शोध छात्रा रजनी ने इस मोटरबाइक की सवारी की जरूर, बस दो मिनट… कदमताल में जो आनंद था वो उस फटफटिया में कहां!

Walking for two weeks now! Just wanna feel bike ride!

Walking for two weeks now! Just wanna feel bike ride!

लोग आते गए कारवां बढ़ता गया …

On the banks of Asi Ganga

On the banks of Asi Ganga

पारंपरिक टीका और गुलाब की पत्तियों से पारंपरिक स्वागत को कौन भूल सकता है, और वो भी उस एथलीट से जो कभी एवरेस्ट की बुलंदी को छूकर आयी थीं। सलाम! आपको हर्षा रावत!

Team AAA at Everester Harsha Rawat's place

Team AAA at Everester Harsha Rawat’s place (Harsha in front row, seating Ist from L to R)

अपने अनुभवों, जज़्बों और जज़्बातों को उत्तरकाशी के पत्रकारों के साथ बांटते यात्री

PC @Nagarpalika, Uttarkashi

PC @Nagarpalika, Uttarkashi

और उत्तरकाशी के डीएम भी यात्रियों के अनुभवों को सुनने पहुंच गए।

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Sh. Sridhar Babu Addanki, DM, Uttarkashi interacting with Team AAA & locals @Nagarpalika

अब टीम का आकार काफी बड़ा हो चुका था, एक दल डोडीताल की तरफ बढ़ चला जहां पिछले बरस की आपदा के बाद से अब तक किसी ने जाने का साहस नहीं दिखाया था। और दूसरा दल उत्तरकांशी के नज़दीक डूंडा गांव में उतर गया। डूंडा उत्तराखंड का संभवत: इकलौता बौद्ध अनुयायी ग्राम है। और इस तरह इस बार से अस्कोट—आराकोट अभियान ने एक और गांव को अपने दायरे में शामिल किया।

Goodbye Uttarkashi!

Goodbye Uttarkashi!

01 जुलाई, 2014 को सवेरे टीम ने उत्तरकांशी को अलविदा कहा और अगले पड़ाव की तरफ कारवां बढ़ चला।

अभी एक सप्ताह का सफर बाकी था, मगर किसी के चेहरे पर न थकान दिखी मुझे और न हौंसलों में कमी। किसी के होंठों पर एक बार भी यह सवाल नहीं था — ‘अभी और कितना चलना बाकी है?’ कुछ लीक से हटकर कदम ऐसे ही लोगों के होते होंगे, हैं न!

अस्कोट—आराकोट अभियान के बारे में और जानकारी के लिए  – https://www.facebook.com/askotarakot.abhiyan?ref=br_tf

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