वो एक सफर था हिंदुस्तान के हृदय में उतरने का, उसके मन को टटोलने का, उसकी दरियादिली को समझने का .. कुछ सफर कुछ के कुछ हो जाते हैं। एम.पी. के साथ ही यही हुआ। चली थी कुछ करने और एक नया अभियान शुरू कर आयी! हिंदुस्तान की तमाम विश्व धरोहरों को छू आने का अभियान, 365 दिनों में पूरे 32 मुकाम पार करने हैं। मैदानों से समंदर तक, लहरों से बुलंदियों तक, किलों और स्मारकों से जंगलों तक। और जंगल भी बस साधारण जंगल नहीं, सुदूर नॉर्थ ईस्ट में काज़ीरंगा जैसे जंगल से लेकर बंगाल के सुंदरवन तक।
ओडिशा के कोणार्क मंदिर से लेकर उत्तराखंड की फूलों की घाटी तक को छूने का अभियान कोई आसान नहीं होने जा रहा, मालूम है मुझे। लेकिन मेरी बेचैनियों को ठिकाने लगाने का यह सबब कोई नामुमकिन भी नहीं है, ये भी मालूम है मुझे!
सबसे पहले जिक्र उन ठिकानों का जिन्होंने मेरे अभियान को सुलगाया –
और अगले ही दिन अगला पड़ाव बनी भीमबेटका की वो गुफाएं जो मुझे लगता है हम इंसानों की शुरूआती #Facebook थी
इन दो दिनों के सफर ने मुझे थकाया जरूर, मध्य भारत में कर्क रेखा पर से गुजरना सितंबर की तपिश में आसान नहीं था।
इसी राज्य में तीसरी विश्व धरोहर के रूप में मौजूद हैं खजुराहो के मंदिर। वहां अगले एक साल के अंदर जाना है मुझे।
कुछ बातें सफर के बारे में मेरे इरादों की
हिंदुस्तान की 32 #WorldHeritageSites तक की दूरी 365 दिनों में नापने भर से कोई रिकॉर्ड मेरे नाम नहीं होने जा रहा। मुझसे पहले भी कुछ लोग ऐसा कर चुके हैं, कुछ आधे से ज्यादा तक होकर आ चुके हैं और कितने ही आगे भी ऐसा करते रहेंगे।
मेरा कोई सफर किसी रिकार्ड के लिए कभी नहीं था। वो सब मेरे अपने मन को मनाने के जतन रहे हैं और आगे भी जब-जब मन जहां-जहां दौड़ता-दौड़ाता रहेगा, मैं दौड़ती रहूंगी।
जैसा कि मैंने कहा, मेरा यह अभियान किसी सोची-समझी योजना के तहत् शुरू नहीं हुआ, बस सांची और भीमबेटका जाना हुआ, मन में कहीं ख्याल आया और फैसला कर डाला कि अपने देश की विरासत को करीब से जानने-समझने के लिए इतना तो कर ही सकती हूं।
अब तक मेरे इरादों ने पंख लगा लिए थे, अगले सालभर की योजनाएं कसमसाने लगी थीं, कब-कहां-कैसे जाना होगा, इसकी खिचड़ी खदकने लगी थी …
#WorldHeritageIndia_365days की योजना आगे क्या रूप लेगी
फिलहाल बस इतना तय है कि हर महीने कम से कम 2 से 3 स्थलों को जानना है, सिर्फ देखने भर से काम नहीं चलेगा। किसी स्मारक के सामने अपनी फोटो खिंचवा भर लेना मेरे अभियान का मकसद कतई नहीं हो सकता। पहले दो स्थलों के सफर ने इतना तो सिखा ही दिया है। आर्कियोलॉजिस्ट, हिस्टॉरियन, जर्नलिस्ट, राइटर, ब्लॉगर, ट्रैवलर, टीचर, प्रोफेसर मेरी इन यात्राओं के संगी-साथी रहेंगे। कोई भी, कहीं भी जुड़ जाएगा, अपनी सहूलियत के मुताबिक। मुझे उन स्थलों के बारे में वो बताने जो #Google (Yes, I am going to challenge you this time!) कभी नहीं बताता, उन स्मारकों के पत्थरों के नीचे फॉसिल बन चुकी उन कहानियों को सुनाने जिन्हें अमूमन कोई नहीं सुनता। अक्सर यही तो करते हैं आप और हम, बस जाते हैं ऐतिहासिक स्मारकों तक, एक फेरा लगाकर लौट आते हैं। हो गई सैर, हो गया पर्यटन।
किसी इतिहासकार के साथ हंपी की हेरिटेज वॉक का इरादा है तो किसी पुरातत्ववेत्ता ने भीमबेटका की गुफाओं को फिर से, उनके साथ हेरिटेज वॉक के बहाने नए सिरे से देखने का न्योता भेजा है। मेरे अजीज़ ट्रैवल ब्लॉगर्स भी साथ आने को तैयार हैं, कोई वैली आॅफ फ्लॉवर में साथ ट्रैक करेगा (गी) और किसी के साथ सुंदरवन की दलदली जमीन देखने की योजना है।
अभियान के बहाने — अकेले (Solo) हिंदुस्तान का सफर
हर मंजिल पर घर से अकेले ही निकलना है, यह तय है। एक मकसद है उस अहसास को जीना जो #SoloWomanTraveler की मानसिक तैयारियों को प्रेरित करते हैं। एक इरादा है उन मुगालतों को तोड़ने का जो हिंदुस्तान में औरत के अकेले सड़क पर गुजरने को या तो बेचारगी मानते हैं या बदचलनी। और कहीं न कहीं उन बारीक अनुभवों को पकड़ना है जो अपने ही देश की सड़कों पर से अकेले गुजर जाने पर हमेशा के लिए हमारे साथ हो लेते हैं।
हिंदुस्तान जितना विशाल है उसी विशालता को जीना है इस अभियान के बहाने। अकेले शुरू करने के बावजूद जब जो साथ आता रहेगा, उसके साथ कदमताल करती रहूंगी।
सांची के सफर में भोपाल के पत्रकार दंपत्ति प्रसून और उपमिता साथ जुड़े।
भाीमबेटका के रातापानी जंगल में निपट अकेली थी। सिर्फ एक ड्राइवर का साथ, सितंबर की गर्मी और गुफाओं को दिखाने साथ हो लिया एम.पी.टूरिज़्म का गाइड।
कितना होगा सफर
I will maintain a log and share detail
सांची और भीमबेटका के सफर में ही दिल्ली से आने-जाने में पूरे 1804 किलोमीटर का रास्ता नाप चुकी हूं। कुल जमा 3 दिन लगे और पैसा खर्च हुआ 10,889/रु। मेरे ख्याल से आगे का सफर कितना रोमांचक, कितना एडवेंचरस और कितना दिलचस्प होने जा रहा है, इसकी झलक देने के लिए बस ये दो-तीन आंकड़े काफी हैं।
अभी से लंबा-चौड़ा गणित नहीं करना, ये रहा का लिंक #WorldHeritageIndia (http://asi.nic.in/asi_monu_whs.asp) आपको जोड़-घटा का शौक हो तो कर डालो, अपुन तो बढ़ेंगे अपनी ही मस्ती में। गणित यों भी कमजोर कड़ी रहा है हमारी, अब भी रह जाए, कोई तकलीफ नहीं।
क्या रहेंगे आने-जाने के साधन
Rail, Road and Airways .. and waterways
सफर वही होता है जिसमें कोई ज्यादा चहारदीवारी न खिंची हो। मतलब कहीं कोई दबाव नहीं, सीमा नहीं, पूर्व शर्तें नहीं, नियम नहीं .. अलबत्ता, ज्यादा सफर ट्रेन की पटरियों और अपने हिंदुस्तान के सीने पर से गुजरती सड़कों पर से होकर गुजरेगा वो इसलिए कि मैं रोड ट्रिप की दीवानी हूं। सच्ची बताउं, इतना भूगोल और हिस्ट्री तो स्कूल में भी नहीं सीखा था जितना इन सड़कों से सीखा है। और वैसे, हवा से बातें भी कर लेंगे कभी-कभार। जेब की हैसियत और समय की किल्लत जब-जब किसी हवाई जहाज़ का रास्ता दिखा देगी, हम उस तरफ हो लेंगे। कोई परहेज़ नहीं है!
क्या होगा विश्व धरोहरों की गहन पड़ताल से जमा हुई कहानियों का
A Book in the making
अगले 365 दिनों तक अपने अनुभवों को, किस्सों को, कहानियों को, घटनाओं को, तथ्यों को और बहुत कुछ को आप सभी के साथ सोशल मीडिया – blog, facebook timeline (follow me – https://www.facebook.com/alkakaushik19), twitter (@lyfintransit) Instagram (lyfintransit) पर बांटती रहूंगी। अभियान की खबरों, किस्सों को शेयर करने के लिए हैशटैग (#WorldHeritageIndia_365days) का इस्तेमाल कर रही हूं, आपसे भी अनुरोध हैं हिंदुस्तान की विरासत को दुनियाभर में लोकप्रिय बनाने के लिए इस हैशटैग को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें।
अखबारों में विश्व धरोहरों के बारे में लिखूंगी, इसके लिए संपादकों से संपर्क कर रही हूं। कहीं कोई नियमित कॉलम के रूप में हमारे विरासत की इबारत को छापने पर राज़ी हो जाएगा तो शायद मेरे इस अभियान की सार्थकता होगी। वरना, यात्रा वृत्तांतों की शक्ल में अपने देश की समृद्ध विरासत पर बातें करती रहूंगी। और जब पूरी 32 मंजिलों को नाप लूंगी तो अपनी मुट्ठी में बंद हुए उन सैंकड़ों किस्सों-कहानियों को एक किताब की शक्ल जल्द से जल्द दूंगी जो मुझे इस देश की मिट्टी में यहां-वहां बिखरे मिले होंगे। आप ही की तरह मुझे भी उस किताब का इंतज़ार है, अभी इसी पल से ….
अभियान का लॉजिस्टिक्स पक्ष
sponsorships/collaborations is the way forward
इस महत्वाकांक्षी अभियान को अकेले अपने दम पर पूरा करने का दंभ मुझे छू भी नहीं सकता। इतिहासकारों, लेखकों, प्रोफेसरों, पत्रकारों, आर्कियोलॉजिस्टों के अलावा भारतीय रेलवे से लेकर आर्कियोलॉजिकल सर्वे आॅफ इंडिया, विभिन्न राज्यों के टूरिज़्म बोर्ड, होटल और रेसोर्ट, ट्रैवल कंपनियां, टूर आॅपरेटर, आॅटो कंपनियां इस अभियान का अहम् हिस्सा होंगे। सोशल मीडिया पर इस अभियान के ऐलान के बाद से ही कई एजेंसियों/प्रोफेशनल्स से मेरे इस अभियान का हिस्सा बनने के लिए हाथ बढ़ाया है।
लेकिन यह तय है कि यह अभियान किसी क्षुद्र कमर्शियल हित को साधने का जरिया नहीं है। यह विशुद्ध एकेडमिक अभियान है जो मुझे मेरे देश की संस्कृति और इतिहास से जोड़ेगा, जो इसके बहाने मेरे जैसे सैंकड़ों हिंदुस्तानियों को अपनी महान परंपराओं पर गर्वबोध करना सिखाएगा। यह अभियान है हिंदुस्तान को एक नए नज़रिए से जानने का, आप जुड़ सकते हैं, अपने विचार बांट सकते हैं, आपकी सलाह मेरे लिए महत्वपूर्ण होगी।
बहुत बहुत शुभकामनाएँ आपके इस सफ़र के लिए । मैं बता नहीं पा रही हूँ कि मुझे कितनी ज़्यादा ख़ुशी हो रही है। पुस्तक लिखने का इरादा अच्छा है।
आपके इस सफर में हम भी साथ हैं, physically न सही virtually ही सही पर जहाँ मौका मिलेगा उस सेक्टर पर जुड़ना चाहूँगी |
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मेरा सौभाग्य! कहीं किसी मोड़ पर, किसी समंदर किनारे, किसी पहाड़ी पगडंडी पर, किसी घने जंगल के पेड़ों के साए के नीचे से गुजरती किसी राहगुज़र पर आप जरूर मिल जाएंगी, यकीन है… और तब आगे का सफर और भी खास बन जाएगा। इस बीच, हौंसला बढ़ाती रहें, इसी खुराक के दम पर निकल पड़ते हैं हम जैसे
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