छत्तीसगढ़ में मैंने खुद को एलिस इन वंडरलैंड की तरह महसूस किया। रायपुर के स्वामी विवेकानंद हवाईअड्डे पर उतरते ही पहला झटका लगा, इतना आधुनिक, चकाचैंध वाला एयरपोर्ट और वो भी छत्तीसगढ़ में! उड़ान उतरने के महज 5 मिनट के भीतर मैं अपने हल्के-फुल्के बैगेज के साथ एयरपोर्ट की आखिरी हद को अलविदा कह रही थी लेकिन पब्लिक आर्ट के खूबसूरत नमूनों को देखकर अटक गई।
बस्तर की मैटल आर्ट – डोकरा के मैगा माॅडल्स यहां प्रदर्शित थे। छत्तीसगढ़ में कलात्मक नमूनों के साथ सफर शुरू होगा, ऐसा सोचा नहीं था लेकिन मेरी शहरी कल्पनाओं की नियति यही थी कि उन्हें आने वाले दिनों में ऐसे ही चटकना था!
रायपुर की सड़कों से पहला-पहल नाता जुड़ रहा था। अकेली थी मगर वो महानगरीय असुरक्षा बोध मेरे इर्द-गिर्द भी नहीं फटक रहा था जो अपने शहर में अब दिन और रात कभी भी साथ नहीं छोड़ता। और अगले कुछ दिनों में मुझे महसूस हो गया था कि छत्तीसगढ़ के मायने नक्सली अफरा-तफरी नहीं होता और न ही यह जंगलों, वनवासियों से घिरे किसी पर्यटन ठिकाने का नाम है!
सिरपुर – बौद्ध परंपरा का रहस्यमयी अध्याय
रायपुर से बाहर निकलकर सिरपुर का रुख किया।
सिरपुर की उन्नत सभ्यता के टीले बीती शताब्दियों में वक्त के बोझ तले दबे रहे। बीते वर्षों में जब पुरातत्व विभाग ने इन टीलों को टटोला तो मालूम हुआ कि बुद्ध के परम भक्त भिक्षु आनंदप्रभु ने महाशिवगुप्त बालार्जुन के शासनकाल में इस विहार का निर्माण कराया था। खुदाई ने उन 14 शानदार कक्षों को एक बार फिर साकार कर दिया है जिनमें स्वागत द्वारों पर द्वारपाल खड़े हैं और बौद्ध परंपरा का एक रहस्यमयी अध्याय अब सिरपुर में खुले आसमान तले अपनी गाथा दुनियाभर से यहां आने वाले सैलानियों को सुनाता है। उस दौर की सुर-तान को सुनने समझने के लिए खुले दिल से चले आइये।
बौद्ध सर्किट का एक अहम् पड़ाव दिखा यहां और राजधानी से बाहर निकली तो मालूम हुआ कि कभी चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भी छत्तीसगढ़ को अपने घुमक्कड़ी मानचित्र में संजोया था।
लक्ष्मण मंदिर
इतिहास की धुंध को चीरता यहां प्राचीन लक्ष्मण मंदिर अपनी पूरी भव्यता के साथ खड़ा है। ईंटों से निर्मित भारत का सबसे उत्कृष्ट मंदिर है यह जिसमें शेषनाग अपने फन से शिव को छाया देते हुए प्रवेशद्वार पर ही विराजमान है। पंचरथ शैली के इस मंदिर का रामायण के लक्ष्मण से कोई लेना-देना नहीं है। दरअसल, 650 ई. में महाकोसल सम्राट महाशिवगुप्त बालार्जुन की माता वस्ता ने, जो कि मगध नरेश सूर्यवर्मा की पुत्री थीं, अपने पति हर्षगुप्त की स्मृति में इस मंदिर का निर्माण करवाया था। विष्णु के अनेक अवतारों और कृष्ण लीलाओं से सजी लक्ष्मण मंदिर की दीवारें आपको अध्यात्मिक सफर पर ले जाएंगी।
पिछले दिनों दलाई लामा भी सिरपुर में बौद्ध परंपरा को सींचने पहुंचे।
महानदी के तट पर बसा सिरपुर आपको कान लगाकर उस बीते वक्त की लय-ताल को सुनने का न्योता देता है। यहां खुदाई के बाद वक्त ने जिन रहस्यों पर से परदा उठाया उन्हें देखकर कोई भी इतिहासकार ठगा खड़ा रह जाएगा।
पत्थरों पर खुदी कलाकृतियां जैसे कई-कई मिथक बुनती हैं यहां, 22 शिव मंदिरों का समूह, 4 विष्णु मंदिर, 10 बौद्ध विहार और 3 जैन विहार जब यहां अपने अस्तित्व को उधाड़ते हैं तो उस दौर की धार्मिक सहिष्णुता आपको हैरत में डाल देती है।
कहते हैं 7वीं सदी में ह्वेन सांग भी सिरपुर में इसी हतप्रभ करती धार्मिक विविधता को देखने चले आए थे।
छत्तीसगढ़ टूरिज्म का नेशनल डांस एंड म्युजिक फेस्टिवल हर साल जनवरी के पहले हफ्ते में सिरपुर में आयोजित होता है जिसमें कला-संस्कृति की अद्भुत झांकी देखी जा सकती है। इस 3 दिवसीय उत्सव में शिरकत के बहाने सिरपुर चले आइये।
आप ही के जैसे किसी आधुनिक ह्वेन सांग की बाट जोह रहा है सिरपुर और स्वागत में बिछा है छत्तीसगढ़! तो फिर चले आइये, न।
बीते दिनों मैंने जिंदगी का एक नया अनुभव लिया, छत्तीसगढ़ के सोलो सफर पर निकली। और जाना कि सोलो ट्रैवल के लिए यह राज्य एकदम उपयुक्त है!
छत्तीसगढ़ टूरिज्म बोर्ड (www.tourism.cg.gov.in) की वेबसाइट से और जानकारी ली जा सकती है।
छत्तीसगढ़ प्रकृति का मानव के लिए महत्वपूर्ण उपहार है। बढिया चित्र, लेकिन जानकारी कम, गत वर्ष मैने सिरपुर घुमक्कड़ी पर एक पुस्तक लिखी है।
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शुक्रिया घुमक्कड़ी के रास्ते मेरे ब्लॉग तक चले आने का! आपकी शिकायत वाकई जायज़ है कि जानकारी कम है। इस लेख को विस्तार से यहां पढ़ा जा सकता है —
http://epaper.dainiktribuneonline.com/284855/Ravivarya/DM_08_June_2014#dual/4/2
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पोस्ट में उल्लेखित भिक्षु “आनंदप्रभु” त्रुटिपूर्ण है, ये भिक्षु “आनंदप्रभ” हैं, विहार से उत्खनन में प्राप्त अभिलेख से ज्ञात है कि महाशिवगुप्त बालार्जुन के राज्यकाल में “आनन्द प्रभ” नामक भिक्षु ने इसका निर्माण कराया था। यह विहार दो मंजिला था। विहार के सम्मुख तोरण द्वार था जिसके दोनों तरफ द्वारपाल एवं कुबेर सहित अन्य प्रतिमाएँ भी स्थित है, इस विहार की मुख्य विशेषता है कि इसके निर्माण में लगे पत्थर जीवाश्मयूक्त हैं। अभिलेख के आधार पर इस विहार को वर्तमान में आनंदप्रभ कुटी विहार कहा जाता है।
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सिरपुर को समझने के लिए सुप्रसिद्ध ब्लॉगर ललित शर्मा सी दृष्टि होनी चाहिए, उन्होनें सिरपुर के विषय में जानकारी सुलभ कराने की दृष्टि से पुस्तक “सिरपुर : सैलानी की नजर से” में अपनी सहज सरल, एवं प्रवाहमय शब्द शैली और अद्भुत चित्रों के माध्यम से सहज ही जानकारी उपलब्ध करा दी है । मूर्तिशिल्प के सारगर्भित वर्णन के साथ तत्कालीन शिल्पकारों की आर्थिक, सामाजिक दशा एवं सिरपुर के उत्कर्ष से लेकर पतन पर इनका लेखन सिरपुर के संबंध में उल्लेखनीय है।
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सहमत हूं आपसे सुधा। सिरपुर को मेरा और वक़्त चाहिए, सिरपुर पर मेरी कलम को और रवानी चाहिए, दुआ करें जल्द वो दिन आए जब उन खंडहरों के बीच कुछ और सांसे ले सकूं, कुछ और अनुभव कमा सकूं, कुछ और सिरपुर जी सकूं …
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